Barish Shayari

मैँने‬ अपना ‪#‎गम‬ आसमान ‪#‎को‬ क्या सुना ‪#‎दिया‬...
शहर के ‪#‎लोगों‬ ने ‪#‎बारीश‬ का ‪#‎मजा‬ ले ‪#‎लिया‬..
कभी झुम के ‪#‎बरसना‬
‪#‎कभी‬ ‪#‎बुंद‬ #बुंद के ‪#‎तरसना‬
आजा ‪#‎बारीश‬ फिर झुम के
मिलेंगी हमे मेरी ‪#‎मोहब्बत‬ #बारीश मे झुम के 
अपने‬ शब्दों मे ‪#‎ताकात‬ डालें आवाज में नही.‪#‎क्युकीं‬
‪#‎फूल‬ तो ‪#‎बारीश‬ की बूंदो से खिलतें हैं ‪#‎तूफानो‬ से नही 
अगर तेरा ‪#‎मेरा‬ कोई ‪#‎connection‬ हे।।।
तो अगली ‪#‎बार‬ जब ये ‪#‎बारीश‬🌧⛈ होगी।।।
हम 👫 ‪#‎अपने‬ आप ‪#‎मिल‬ जायेंगे। 
कीसी ने पूछा की तूम्हारे ‪#‎आॅखे‬ इतनी खुबसूरत क्यो है,
हमने भी कह दिया ‪#‎बारीश‬ के बाद मोसम सूहाना हो ही जाता है। 
हमारा ‪#‎अंदाज‬ कोइ ना लगाए तो ठीक होगा..
क्योकी अंदाज तो ‪#‎बारीश‬ का लगाया जाता है ‪#‎तुफान‬ का नही..!! 
वो मेरे ‪#‎रुबरु‬ आई भी तो
‪#‎बारीश‬ के ‪#‎मौसम‬ मेँ,,
मेरी ‪#‎आंखो‬ से ‪#‎आंसु‬ बह
रहे थे
और
वो ‪#‎बरसात‬ समझ बैठे...
तैरना तो आता था हमे मोहब्बत के समंदर मे लेकिन,
जब उसने हाथ ही नही पकड़ा तो डूब जाना अच्छा लगा||
इन बारिशों से दोस्ती अच्छी नही ,
कच्चा तेरा मकान है, कुछ तो ख्याल कर..
भीग रहा हे जला दिल मेरा इस बारिशमें फिर भी राहत नही है
प्यासा रह गया मैं फिर भी इसमे पिघली हुइ तेरी चाहत नही है
मौसम की पहली बारिश में  तुम मिले इस तरह
जैसे धरती मिल गई हो  आसमान से
जैसे बूँदों ने पहली बार  किया हो 
आलिंगन  माटी के सीने से और उसी माटी की सौंधी
खुशबू की तरह फैल रहा है  हर तरफ तेरा प्यार
मौसम भी है और मौका भी है।
सावन के मौसम का झोका भी है।।
ऐसे में ना ले दिल अंगड़ाई तो देख
ये तेरी मदहोश आँखों का धोखा है।
जी में आता है दिल में भरे दर्द की बस एक" चिलम" सुलगाऊं
एक तेज" कश भर कर" गोल छल्लों. में उडाऊं
रीते मन की व्यथा धुएं में खो जाए
आँखों में उतरे सावन से एक घटा बरस जाए
और सुलगे हुए लम्हों को कहीं ठंडक मिल पाए 
बारिश का मौसम बहुत तडपता है;
उनकी याद हैं जिन्हें दिल चाहता है;
लेकिन वो आए भी तो कैसे;
ना उनके पास रैन कोट है और ना छाता है।
आग ये कितनी दूर जली है हमपे ये लौ बरस रही है
दूर निगाहों से होकर भी वो आंसू मुझे परोस रही है
हिलता नहीं है एक भी पत्ता कोई आंधी तरस रही है
सावन आया हर रातों में दुख की घटा गरज रही है
बरसात तो हुई मगर सावन नहीं आया
अबके बरस भी लौटके साजन नहीं आया
मेरी आंखों में छुपा है तेरा ही उजाला
दिल में रहा चांद, मेरे आंगन नहीं आया
तुमसे जो मुहब्बत की तो दुनिया भी छोड़ दी
और तू भी कभी थामने दामन नहीं आया
मेरी मौत भी बेबस है आके तेरे दर पे
कल हलकी हल्की बरिश थी, सर हवा का रक़्स भी था
काल हलकी हल्की बरिश थी
कल सर हवा का रक भी था
कल फूल भी निकले निखरे थे
कल उन पे आप का अक्स भी था
काल बदल कलय गहरे थे
काल चंद पे लाखों पहरे थे
कुछ टुकरे आप की याद के
बारी डेयर कहो दिल मैं थेरे थायो
कल याद उलझी उल्झी पतली
और कल तक ये न सुलझी पतली
कल याद बोहुत तुम ऐ थाय
कल याद बोहुत तुम आए थे...
कभी शोक हैं..
कभी गम सी हैं..
ये बारीशन भी..
तुम सी हीन।
थेहरता एक भी मंज़र नई वेरन आँखों में
हमारी शहर सी बादल भी बे बरसी निकलता हाय
रोज़ आते हैं बादल? अबर-ए-रहमत ले कर,
??मेरे शहर के आमल उन्हैं ब्रसनाय नहीं देखते...
बारिश हुई तो घर के डरीचे से लगे हम,
चुप-चाप सोगवार तुमेन सोचते रहे…..!!!
काई रोग दे गई है नए मौसमों की बारिश,,
मुझे याद आ रहा है मुझे भूल जाने वाले वाले..
ये बरिशें भी तुम सी हैं,
जो बरस गई तो बहार हैं,
जो थेर गई तो और है,
कभी आ गई युंही बे सबाब,
कभी चा गई यूं ही रोज-ओ-शब,
कभी शोर है, कभी चुप है,
ये बरिशें भी तुम सी हैं,
रात को इक दबी हुई सी राख को,
कभी यूं हुआ के बुझा दिया,
कभी खुद से खुद को जला दिया,
कहीं बून्द में गम सी हैं,
ये बरिशां भी तुम सी हैं..
बारिश के मौसम मैं अजीब सी कशिश है,
ना चाहते होवे भी कोई शिदत कहो याद आता है...
रिम झिम रिम झिम बरस रही है,
याद तुम्हारी कतरा कतरा...
अब कोन से मौसम से कोई आस लगाये,
बरसात में भी याद न जब उन को हम ऐ..
बरिश और मोहब्बत दोनो ही बोहत यादगर होते हैं,
फ़र्क़ इतना इतना है,
बरिश मैं जिस्म भीग जाता है और मोहब्बत मैं आंखें..
तेरी क़ुर्बात भी नहीं है मुयस्सर,
और दिन भी बारिश के आ गए हैं..
क्या रोग दे गई है ये नए मौसम की बारिश,
मुझे याद आ रहे हैं मुझे भूल जाने वाले हैं..
Jab tez hawayein chalti hai to jaan hamari jati hai,
Mausam hai barish ka aur yaad tumhari aati hai.
Badal jab garajte hain, dil ki dharkan badh jati hai,
Dil ki har ek dharkan se awaz tumhari aati hai.
Mausam hai barish ka aur yaad tumhari aati hai,
Barish ke har qatre se awaz tumhari aati hai.
Yeh barishein bhi tum si hain,
Jo baras gayi to bahar hain,
Jo thehar gayi to qarar hain,
Kabhie aa gayi yun hi besabab,
Kabhie chha gayi yun hi Roz o Shab
Kabhie shor hain, Kabhie chup si hain,
Kissi Yaad mayn kissi Raat ko,
Yeh barishein bhi tum si hain,
Ek dabi hui si raakh ko,
Kabhie yun huwa ka bujha dia,
Kabhie khud se khud ko jala dia,
Kahin boond boond mein gum si hain.
Yeh barishein bhi tum si hain
Aadat Uski Thi Bus Mujhe Jalane Wale
Baat Ki Hans Ke Mgr Dil Ko Dukhane Wali
Ajkal Wo Mujhe Kuch Badla Howa Lgta Hy
Ho Gain Uski Nighein Bhi Zamane Wali
Hum Ne Ikhlas Ka Daman Nhi Chhora Ab Tk
Haye Uski Tu Muhabbat Hy Rulane Wali
Main Ne Samjha Tha Guzar Jaye Ga Mausam Lekin
Rut – E – Barsat Bi Nikli Tu Satane Wali
Tumhare Waste Ab Koi Nhi Hy WASI
Khud Se Batein Na Karo Dil Ko Behlane Wali…
Main Tere hijar Ki Barsaat Main Kab Tak Bheegon …!!
Aise Mosam Main To Deewarain Bhi Gir Jati Hain…!!!!
Is dafa tow barishain rukti hi nahin Faraz !
Hum ne kya aansu piye k saray mausam ro paray!
Is barish k mausam me ajeeb si kashish h
Na chahte hue bhi koi shidat se yaad aata hai.
Mujhe maar hi na dale in badlon ki sazish,
Ye jb se baras rahe hain tum yaad aa rhe ho.
Rim jhim rim jhim baras rahi hai,
Yaad tumhaari qatraa – qatraa
Kabhi Shokh Hein
Kabhi Gum Si Hein.. Ye Baarishen Bhi.. Tum Si Hein.
Kabhi Ji Bhar Ke Barasna, Kabhi Bond Bond Ke Liye Tarasna,
Ay Barish Teri Aadatein Mere Yaar Jesi Hain…!
Mera Shahar To Baarishon Ka Ghar Thehra
Yahan Ki Aankh Ho Ya Dil, Bahot Barasti Hain
Ab Kon Se Mausam Se Koi Aas Lagaye
Barsaat Mein Bhi Yaad Na Jab Un Ko Hum Aye..
Bin badal barsaat nahin hoti,
Suraj doobe bina raat nahin hoti,
Ab kuchh aise haalat hain hamare ki,
Aapko dekhe bagair din ki shuruwat nahin hoti.
Kisne bheege hue baalon se ye jhatkaa pani,
Jhoom ke aayi ghata toot ke barasa pani.
Koi matawali ghata peeke jawani ki umang,
Dil baha le gaya barsat ka pehala pani…

Leave a Comment